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अगर आपको गर्भधारण करने में किसी तरह की कठिनाई आ रही है, तो बहुत मुमकिन है कि आपने शायद पीसीओडी और पीसीओएस शब्द सुन रखे होंगे। ये दोनों एक खास तरह की मेडिकल स्थिति है जो महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर असर डालती हैं। दुनिया भर में महिलाओं की अच्छी खासी तादाद इन मेडिकल कंडीशन से जूझ रही है। इस लेख में हम आपको पीसीओडी और पीसीओएस के बारे में बताएंगे। साथ ही, इनके बीच के अंतर भी जानने की कोशिश करेंगे।
पीसीओडी (PCOD) एक मेडिकल कंडीशन है। इसमें महिला के अंडाशय में बड़ी संख्या में अपरिपक्व या कम परिपक्व अंडे बनते हैं। धीरे-धीरे ये अंडाशय में सिस्ट के रूप में विकसित हो जाते हैं। इस वजह से अंडाशय का आकार बड़ा हो जाता है। यही नहीं, पीसीओडी होने के बाद महिलाओं के गर्भाशय में बड़ी मात्रा में पुरुष हार्मोन (एंड्रोजन) निकलता है। इस वजह से महिलाओं को गर्भ धारण करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। साथ ही, उनमें अनियमित माहवारी, बालों का झड़ना और असामान्य वजन बढ़ने के लक्षण भी देखे जा सकते हैं। यह कोई बेहद असामान्य बीमारी नहीं है, बल्कि भारत में 10-20 प्रतिशत महिलाएं इसका सामना कर रही हैं। हालांकि, पीसीओडी को खान-पान और जीवनशैली में बदलाव से कंट्रोल किया जा सकता है।
पीसीओएस (PCOS) एक मेटाबोलिक विकार है। इसमें महिलाएं अपने प्रजनन के वर्षों (12 से 51 वर्ष के बीच) में हार्मोनल असंतुलन से प्रभावित होती हैं। पुरुष हार्मोन के लेवल में बढ़ोतरी के कारण महिलाओं का मासिक धर्म रुक-रुक कर आता है। ओव्यूलेशन अनियमित हो सकता है जिससे गर्भवती होना मुश्किल हो जाता है। शरीर और चेहरे पर एक साथ असामान्य बाल उग आते हैं, जिससे लंबे समय में हृदय रोग और डायबिटीज हो सकता है। पीसीओएस एक तरह का गंभीर मेडिकल कंडीशन है।
कुछ महिलाओं को पहली माहवारी के समय इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। कुछ महिलाओं को इसका पता तब चलता है जब उनका वजन बहुत बढ़ जाता है। या फिर उन्हें गर्भवती होने में परेशानी होती है।
इस तरह देखें, तो मोटे तौर पर देखने में दोनों मेडिकल कंडीशन में बहुत सारे लक्षण एक जैसे लगते हैं। इसलिए, ख़ुद से अंदाज़ा लगाने से बेहतर है कि आप किसी जानकार से संपर्क करें। लेख में आगे हम बात करेंगे इन मेडिकल कंडीशन के उभरने की वजहों की।
महिलाएं पीसीओएस से किस तरह प्रभावित होती हैं, इस बारे में पक्के तौर पर कहा नहीं जा सकता। यह कारण अलग-अलग महिलाओं के लिए अलग-अलग हो सकते हैं। हालांकि, कुछ वजहें हैं जो सबसे आम हैं:
यह सवाल बेहद आम है। इन स्थितियों के बारे में जानने वाली हर महिला के दिमाग में आता है कि जब उन्हें पीसीओएस या पीसीओडी होगा, तो उन्हें कैसे पता चलेगा? उनके शरीर पर इससे क्या फर्क पड़ेगा? सामान्य से अधिक एंड्रोजन लेवल होने से उनकी सेहत पर असर पड़ सकता है। कुछ जटिलताएं ऐसी हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है:
दोनों मेडिकल कंडीशन को समझने के बावजूद कुछ महिलाओं के दिमाग में यह सवाल आता होगा कि क्या पीसीओडी और पीसीओएस एक जैसे हैं या एक-दूसरे से अलग हैं। दोनों मेडिकल कंडीशन, महिलाओं में उनकी प्रजनन आयु के दौरान अंडाशय और हार्मोनल असंतुलन से जुड़े हैं और इनके लक्षण भी एक जैसे होते हैं। लेकिन दोनों के बीच कुछ अंतर ऐसे हैं जिन्हें हर महिला को जानना चाहिए:
पीसीओडी |
पीसीओएस |
पीसीओडी एक सामान्य गड़बड़ी है और दुनिया की 10% महिला आबादी इससे प्रभावित है। | पीसीओएस एक गंभीर मेडिकल कंडीशन है और दुनिया की लगभग 0.2% से 2.5% महिला आबादी इससे प्रभावित है। |
पीसीओडी एक ऐसी स्थिति है जिसमें अंडाशय कई अपरिपक्व या आंशिक रूप से परिपक्व अंडे बनाते हैं। ऐसा खराब जीवनशैली, मोटापा, तनाव और हार्मोनल असंतुलन के कारण होता है। | पीसीओएस मेटाबॉलिक से जुड़ी समस्या है और पीसीओएस का अधिक गंभीर रूप एनोवुलेशन का कारण बन सकता है जहां अंडाशय अंडे बनाना बंद कर देते हैं। |
पीसीओडी महिलाओं में प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं करता है। इस स्थिति में महिला अभी भी थोड़ी सी मदद से ओव्यूलेट कर सकती है और गर्भवती हो सकती है। | पीसीओएस महिलाओं में प्रजनन क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। पीसीओएस के कारण महिलाएं नियमित रूप से ओव्यूलेट नहीं कर पाती हैं, जिससे उनका गर्भवती होना मुश्किल हो जाता है। यदि गर्भवती हो जाती हैं, तो गर्भपात, समय से पहले जन्म या गर्भावस्था में जटिलताओं का खतरा होता है। |
पीसीओडी में कोई गंभीर जटिलताएं नहीं होती हैं। | पीसीओएस में बाद के स्टेज में टाइप 2 डायबिटीज, हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर और एंडोमेट्रियल कैंसर जैसी गंभीर जटिलताएं होती हैं। |
हां, पीसीओडी से पीड़ित महिलाएं गर्भवती हो सकती हैं और गर्भावस्था पूरी कर सकती हैं। इसके लिए भविष्य में किसी भी जटिलता से बचने के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलना और सलाह लेना बेहतर होता है।
हां। मेटाबॉलिज्म, हार्मोनल असंतुलन और एण्ड्रोजन हार्मोन के बढ़े हुए स्तर के कारण पीसीओडी या पीसीओएस में महिलाओं का वजन बढ़ सकता है। महिलाओं में वजन बढ़ने का पैटर्न भी पुरुषों की तरह होगा। शरीर में वसा का ज्यादा हिस्सा पेट की चर्बी बनाएगा।
पीसीओडी कोई गंभीर समस्या नहीं है। लेकिन इसका कोई पूरा इलाज नहीं है। स्वस्थ वजन बनाए रखना, खान-पान में सावधानी बरतना, नियमित व्यायाम करना और सक्रिय रहकर इससे बचा जा सकता है।
पीसीओएस महिलाओं में एक गंभीर चिकित्सा स्थिति है। इसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन इससे जुड़े एक या कई लक्षणों को मैनेज करके जीवन को बेहतर बनाया जा सकत है।
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